Last modified on 13 फ़रवरी 2019, at 14:19

अन्तर्दाह / पृष्ठ 32 / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:19, 13 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध' |अनुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)



ये सुक , कपोत , मृग, मधुकर ,
खंजन , कोकिला विचरते
दर, कुंदकली , शशि, दाड़िम,
स्मर - शर , हंस हहरते ।।१६१।।

जलदेव - पाश, श्रीफल औ'
इस कनक कदलि का कम्पन
उर व्यथित प्रथित करते हैं
इनके असह्य स्पन्दन ।।१६२।।

यह शांति दायिनी संध्या
यह स्वर्णिम दिवस दमकता
नव आम्रमंजरी मंजुल
कर में ले मदन महकता ।।१६३।।

होता परिरंभ क्षितिज में
आकाश - धरा का अनुपम
नभ के सूने आंगन में
राका-शशि का सुख-संगम ।।१६४।।

नदियों का मिलन जर्लाध से
ऊषा का मिलन अरुण से
अब बीती राग सुनाते
उठते हैं गीत करुण से ।।१६५।।