Last modified on 19 अप्रैल 2013, at 15:52

अन्त नी होय कोई आपणा / निमाड़ी

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:52, 19 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=निमाड़ी }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    अन्त नी होय कोई आपणा,
    समझी लेवो रे मना भाई

(१) आप निरंजन निरगुणा,
    आरे सिरगुणी तट ठाढा
    यही रे माया के फंद में
    नर आण लुभाणा...
    अन्त नी...

(२) कोट कठिन गड़ चैड़ना,
    आरे दुर है रे पयाला
    घड़ियाल बाजत दो पहेर का
    दुर देश को जाणा...
    अन्त नी...

(३) इस कल युग का हो रयणाँ,
    आरे कोई से भेद नी कहेणा
    झिलमील-झिलमील देखणा
    मुख में शब्द को जपणा...
    अन्त नी...

(४) भवसागर का हो तैरणा,
    आरे कैसे पार उतरणा
    नाव खड़ी रे केवट नही
    अटकी रहयो रे निदाना...
    अन्त नी...

(५) माया का भ्रम नही भुलणा,
    आरे ठगी जायगा दिवाना
    कहेत कबीर धर्मराज से
    पहिचाणो ठिकाणाँ...
    अन्त नी...