भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्त / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सरगको अन्त पातालको अन्त महि, मेरु को अन्त कैलाश पेखो।
त्रिगुण को अन्त तिहुदेव को अन्त, कल्पान्त को अन्त शशि सूर्य शेषो॥
अग्नि को अनत जल पौन को अन्त, चहुँ वेद को अन्तपर्यन्त पेखो।
दास धरनी कहै अलख आपै रहै, सन्तका अन्त नहि समुझि देखा॥6॥