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अन्धकार का गहराना / अनुभूति गुप्ता

गहराता जाता है
मन में अन्धकार
दिन-ब-दिन
जब
चीखतीं हैं नदियाँ
बरगलाती हैं वादियाँ
अनसुनी कहावतें
बेवक्त घटी आहटें
बरबस पुकार देती हैं
सुलगती चिमनियों से....

तम की मार
एक लम्बे समय से
अनायास ही सहते हुए
सोचती हैं
कि:
शायद एक दिन
कोई तो आयेगा
उनकी उन्मुक्त हँसी
लौटाने को...