Last modified on 16 अगस्त 2013, at 01:20

अन्धेरों का गीत / उज्जवला ज्योति तिग्गा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:20, 16 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उज्जवला ज्योति तिग्गा |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मूक बाँसुरी गाती है
मन ही मन
अन्धेरों के गीत
मूक बाँसुरी में बसता है
सोई हुई उम्मीदों
और खोए हुए सपनों का
भुतहा संगीत
देखती है मूक बाँसुरी भी
सपने, घने अन्धेरे जंगल में
रोशनी की झमझम बारिश का
मूक बाँसुरी में क़ैद है
अन्धेरे का अनसुना संगीत