भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्धे जहान के अन्धे रास्ते / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अन्धे जहान के अन्धे रास्ते, जाएँ तो जाएँ कहाँ
दुनिया तो दुनिया तू भी पराया, हम यहाँ न वहाँ

जीने की चाहत नहीं, मर के भी राहत नहीं
इस पार आँसू, उस पार आहें, दिल मेरा बेज़ुबाँ

हमको न कोई बुलाए, न कोई पलकें बिछाए
ए ग़म के मारो, मंज़िल वहीं है, दम ये टूटे जहाँ

आगाज़ के दिन तेरा अंजाम तय हो चुका
जलते रहे हैं, जलते रहेंगे, ये ज़मीं-आसमाँ

फ़िल्म : पतिता-1953