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अपड़ू- सी छैं / कविता भट्ट

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मूल एवं अनुवादःडॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
1
चाँदनी रात
हाथ में तेरा हाथ
प्रेम की बात

जुनाली रात
हथ माँ तेरु हथ
माया की बात।
2
है तो उजाला
दुःख भी तेरे साथ
तारों की माला

छन उजाळा
खैरी बी त्वे दगड़
गैंणों की माळा
3
प्यार तू मेरा
तेरी इन आँखों ने
जाने किया क्या

तू मेरी माया
तेरी यूँ आँख्यूँन त
जणी क्य काया
4
साँझ-सवेरे
हिचकियाँ दे रही
संदेश तेरे

संध्या-सुबेर
बडुळी देणी छन
रैबार त्यारा
5
न कोई बाँचा
केवल तू समझा
प्यार ये साँचा

कैन नी बाँची
बस त्वेन समझी
माया य साँची
6
निर्बल जीव
चढ़ाई-उतराई
मन-कल्पना

क्वाँसू पराणी
उकाळ-उँदार च
मन माँ गाणी
7
है अपना सा
इतनी अवधि से
ओ! तू था कहाँ

अपड़ू सी छैं
इथगा दिनू बिटी
तू कख जि रैं
8
सुकून पाया
तेरा चेहरा देखा
पहाड़ी चाँद


पाई सकून
तेरी मुखड़ी दिखे
काँठा माँ जून
9
दिवस डूबा
मेरा वो मनमीत
अभी न आया

दिन डुबी गे
मेरू वू मायादार
अबी बी नि ऐ
10
मन में तू है
दुनिया का ना डर
तू न रूठना

मन माँ तू छैं
दुन्या मि नि च डौर
गैल्या ना रुसै
-0-