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अपना देश / सूर्यकुमार पांडेय

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गर्मी का मौसम जब आए,
सूरज रंग-गुलाल लुटाए।
वर्षा में बादल पिचकारी-
बनकर हमें भिगोता जाए।
जाड़ों में कुहरे के उजले-
कपड़े लाता अपना देश।
हर मौसम में होली का
त्योहार मनाता अपना देश।

गंगा की लहरों-सा चंचल,
दृढ़ विन्ध्याचल-सा ठहरा।
तन हिमगिरि से भी ऊँचा है,
मन सागर से भी गहरा।
केसर की क्यारी-सा हर पल-
गन्ध लुटाता अपना देश।

कहीं डांडिया, गरबा, गिद्दा,
कत्थक और भरत-नाट्यम।
बिरहा कहीं, कहीं पर चैता,
कहीं मृदंग, ढोल ढम-ढम।

फागुन आते ही मस्ती में-
तान लगाता अपना देश।

खेत और खलिहानों में,
हर पल इठलाता अपना देश।
कितना प्यारा देश हमारा,
हँसता-गाता अपना देश।