भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपना पाठ सुनाओ / फुलवारी / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हुआ सवेरा ची ची करते
नन्हे पंछी बोले -
उठ जा गुड्डू , मुन्नू , पप्पू
अपना मुखड़ा धो ले॥
सूरज की किरणों ने तब
अपना घूँघट सरकाया।
हँस कर बोली भैया अब
खाने का नंबर आया॥
इठला कर तब कहा हवा ने
बस्ता चलो उठाओ।
खोल किताबें पढ़ने बैठो
अपना पाठ सुनाओ॥