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अपना सपना धूल बनाकर / केदारनाथ अग्रवाल

वह
समाज में न्याय न पाकर,
अन्याओं की
चोट दबाकर,
भरी देह का नेह सुखाकर
खाकर ठोकर,
रोम दुखाकर
अपना
सपना
धूल बनाकर,
हाथ-पाँव मजबूत बनाकर
कर से कर
पर की मजदूरी,
पग से हर
क्षण-क्षण की दूरी
जीवन जीती है
अनचाहा
दुःख के सागर में
अनथाहा।

रचनाकाल: ०५-०४-१९६३