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"अपनी ओर मोड़ लूँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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तेरा दुःख इन सबसे ऊपर है
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न टूटता है, न छूटता है
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बस मुझे मथता है रात दिन
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तड़पाता है हर छिन
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कोई उपाय ऐसा पाऊँ
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कि
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किसी ऐसे लोक चला जाऊँ
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जहाँ जाकर
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तेरे सारे दुःख ओढ़ लूँ
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सभी बाणों की नोकें
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अपनी ओर मोड़ लूँ।
 
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21:54, 17 अगस्त 2018 के समय का अवतरण


पहाड़ होता तो तोड़ ही देता
रस्सी होती तो जोड़ ही देता
धन होता तो छोड़ ही देता
फौलाद होता तो मोड़ ही देता
तेरा दुःख इन सबसे ऊपर है
न टूटता है, न छूटता है
न मुड़ता है
बस मुझे मथता है रात दिन
तड़पाता है हर छिन
कोई उपाय ऐसा पाऊँ
कि
किसी ऐसे लोक चला जाऊँ
जहाँ जाकर
तेरे सारे दुःख ओढ़ लूँ
सभी बाणों की नोकें
अपनी ओर मोड़ लूँ।