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कहता दर्दे-हिज्र<ref>विरह का दर्द</ref> भी जो ना मजबूर होता
बद-क़िस्मती क़िस्साक़िस्स-ए-इश्क़ मुख़्तसर<ref>संक्षिप्त</ref> था बहुत
इक और मोड़ होता तो ज़रा मशहूर होता
काश मैं शक्लो-सूरत<ref>सुंदरता</ref> में थोड़ा और होता
ख़ुदायख़ुदाया, क्या हम न पाते अपनी मोहब्बत को
अगर हमें अपनी वक़ालत का शऊर<ref>ढंग</ref> होता