भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपनी ज़िल्लत मेरे सर दे मारी भी / जंगवीर सिंंह 'राकेश'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=जंगवीर | + | |रचनाकार=जंगवीर सिंह 'राकेश' |
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
|संग्रह= | |संग्रह= |
18:35, 25 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण
अपनी ज़िल्लत मेरे सर दे मारी भी
और बची बाकी तुझमें ख़ुद्दारी भी
एक तो मैं पहले ही पगला लड़का था
और लगा ली इश्क़ की इक बीमारी भी
चल दूर ले चल यार मुझे मैख़ाने से
मुझमें ये फ़न है और यही दुश्वारी भी
तुमने पहले इश्क़ सिखाया था मुझको
तुम ही पहले कर बैठे गद्दारी भी
यारो में कुछ ही होते हैं सच्चे यार
सबके बस की बात नही है यारी भी