http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%80_%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9F_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE_%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B0&feed=atom&action=historyअपनी टेंट / राम सेंगर - अवतरण इतिहास2024-03-28T09:29:18Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%80_%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9F_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE_%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B0&diff=264399&oldid=prevअनिल जनविजय: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम सेंगर |अनुवादक= |संग्रह=ऊँट चल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2019-07-05T18:16:47Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम सेंगर |अनुवादक= |संग्रह=ऊँट चल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=राम सेंगर<br />
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|संग्रह=ऊँट चल रहा है / राम सेंगर<br />
}}<br />
{{KKCatNavgeet}}<br />
<poem><br />
तें अपनी टेंट देख कानी <br />
कस मानी हम<br />
होते सोलह दूनी आठ ।<br />
<br />
अथ-इति का फ़र्क घुला<br />
शुरू कहाँ ख़त्म कहाँ<br />
अपनी सँघर्ष कथायात्रा के सारे सोपानों की<br />
है इतनी गड्डमड्ड भाषा ।<br />
खदर-बदर मची हुई<br />
चढ़ी हुई हाण्डी में<br />
जासूसी कुत्तों की अगल-बगल सूँघ-सांग जारी है <br />
प्लॉट हँसी का अच्छा ख़ासा ।<br />
<br />
हाथों की एक-एक उभरी नस बता रही<br />
पजर रहा पोखर का पानी <br />
ज़िस्मानी रँग <br />
काई के बेतरह उचाट ।<br />
<br />
तें अपनी टेंट देख कानी<br />
कस मानी हम<br />
होते सोलह दूनी आठ ।<br />
<br />
गरिया-गरिया ख़ुद को <br />
पूरी निर्ममता से <br />
जनपथ पर हुदियाए साँड़ की सधी गति से आते हैं<br />
दृश्यों को जग्ग-बग्ग तकते ।<br />
अपनी औक़ात के<br />
हमीं गूँगे साक्षी हैं<br />
ज़हर में बताशे के खिर-खिर कर घुलने की किसे कहें<br />
बाज़ आ गए बकते -झकते ।<br />
<br />
अँतड़ी की हर मरोड़ पर तिहरे हो-हो कर<br />
काटी हैं रातें तूफ़ानी<br />
बर्फानी है <br />
खटिया पर बिछी हुई टाट ।<br />
<br />
तें अपनी टेंट देख कानी<br />
कस मानी हम <br />
होते सोलह दूनी आठ ।<br />
</poem></div>अनिल जनविजय