अपनी तमाम तुच्छताओं के साथ
कैसे दाखिल किया जाऊंगा
महानता के वृत्त मे?
जहाँ सरलीकृत पथ नहीं
न ही लचीलेपन का पड़ाव
अनुग्रह की मंज़िल नहीं जहाँ
कैसे अपनी
जाग्रत अहम्मन्यताओं के साथ
आमंत्रित पुकारा जाऊंगा?
अंतिम अचूक उपाय के बतौर
करूंगा अपना कद ऊंचाइयों से भी बेहद ऊंचा
बिना झुके जिसके मस्तक पर
चहलकदमी करती रहे
हमारे समय की तथाकथित महानता।