भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी धूप मे भी कुछ जल / बाक़ी सिद्दीक़ी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:59, 5 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाक़ी सिद्दीक़ी }} {{KKCatGhazal}} <poem> अपनी ध...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपनी धूप मे भी कुछ जल
हर साए के साथ न ढल

लफ़्ज़ों के फूलों पे न जा
देख सरों पर चलते हल

दुनिया बर्फ़ का तूदा है
जितना जल सकता है जल

ग़म की नहीं आवाज़ कोई
काग़ज़ काले करता चल

बन के लकीरें उभरे हैं
माथे पर राहों के बल

मैं ने तेरा साथ दिया
मेरे मुँह पर कालक मल

आस के फूल खिले ‘बाक़ी’
दिल से गुज़रा फिर बादल