भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी नायिका खुद बना जाए / हेमा पाण्डेय

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:02, 15 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमा पाण्डेय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सृष्टि में परिवर्तन
अहोरात्र सम्पन्न हो रहा है
अपनी तमाम पुरातन
छवियों को तोड़ता हुआ
जीवन एक नए समय में
चला आया है।
ऐसे में ज़रूरी है कि
स्त्री भी अपने अंधेरो
और उजालो को
अब नई रोशनी में देखें
विमर्शों की पुरातन
केंचुल के बाहर
अपनी सम्भावनाओ को
ईमानदारी से तराशा
आखिर दर्द की सीली
अंधेरी रातों के बाद
एक भोर फुट रही है।
फिर क्यो पृष्ठ प्रेषण किया जाए
क्यो पुरानी टीसों को ढाल बनाकर
इस नए समय में
सुरझाये तलाशी जाए
क्यो स्त्री होने को एक
अवसर की तरह जिया जाय
क्यो न अपने जीवन की
नायिका कुछ इस तरह बना जाएँ।