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अपनी परछाई के पीछे खौफ़ के आँसू पिये / अनिरुद्ध सिन्हा

अपनी परछाई के पीछे खौफ़ के आँसू पिये
आप ही कहिए कोई कैसे यहाँ आख़िर जिये

बंद रखकर पट तिमिर से रातभर लड़ने के बाद
भोर होते ही उजालों ने बहुत ताने दिये

कब तलक आवाज़ देंगे क़ातिलों के गाँव में
एक ढीलासा कोई क़ानून हाथों में लिए

ज़िन्दगी के इस सफ़र में लोग कुछ ऐसे भी हैं
जानकर सच बात भी रहते हैं होठों को सिये

मन में धरती की ललक आँखों में ले आकाश को
हमने पलकों पर उठाकर चाँदतारे छू लिये