प्रसंग:
भिखारी ठाकुर ने अपनी विभिन्न लघु पुस्तिकाओं की भूमिका एवं विषय-सूची के रूप में गद्य तथा पद्य में समय-समय पर लिखा। यद्यपि अब वे लघु-पुस्तिकाएँ संग्रहालय की वस्तु बन गई हैं; किंतु इनकी भूमिकाएँ तथा सूचियाँ कृतियाँ है। अतः द्रष्टदव्य हैं।
11.
लेके शंका समाधान, बाटे नाम रतन के खान।
भिखारी कुतुपुर मकान, करत बानी हम बखान॥
हमरा पुस्तक में प्रधान, 'भिखारी' शंका समाधान।
कइ एक कविता प्रमान, देहल बा जहाँ-तहाँ से आन।
शुरु से आखिर सुजान, पढ़ते-पढ़त होई पहचान।
साइरी बिरहा के खान, जैसे होता पिण्डा-दान।
तारी पिअला के बखान, चलल फैशन के चलान।
दोनों बेकती के टिपवान, होला मानर के बजान।
जौरे नेटुआ के डगरान, ओही में के सुरान।
नचला-गवला के बतलान, किनलऽ बालक-बूढ़ा-जवान।
दौलत होत नोकसान, मन के मिट जाई अरमान।
हिन्दू-मुसलमान, सुमिरलऽ अलख पुरुष निबान।
अथवा राम-कृष्ण भगवान, चाहे अल्ला-खुदा सुमान।
जेह से खुशी रहि संतान, बनइहन पक्का के मकान।
खूब उपजीहन गेहुम-धान, करीहन मेवा से जलपान।
तेकरा बाद भोजन पकवान, चाभत रही ह मगही पान।
करी लग्यान गंगा स्नान, कर के करीह वने से दान।
केहु के करीह मत अपमान, तबहीं ठीक से नीमही सान।
ठणढ़ा कई के बोल जबान, नइखे रहे के बीच जहान।
आजादी भइलन हिन्दुस्तान, खुशी हाल मन में मान।
पढ़ऽ भागवत पुरान, ना बाईबिल-कुरान।
लेल संका समधान, बाटे नाम रतन के खान।
हमार सब किताब में जितना हमार छपवावल बा, तेह सब किताब में 'भिखारी शंका समाधान' किताब बहुत अच्छा छपल बाटे। पहले 'भांड़ के नकल' देहल बा, जवना में पिण्डा के ब्यान, तारी पिअला के बखान, गरीब मरद वह जनाना का फैशन के बयान, लय चना जोर गरम का तर्ज पर बा, सायरी बिरहा-32 पद के बा। झुलना बो नेटुआ का लय में गाना। गनिका के हरिकीर्त्तन आधा पद के, गोविन्द नाम के हरिकीर्त्तन आधा पर, आधा छूहा। एक गाना देहल बा, हद ह छपानेवाला कइएक जन बा। नाई जाति के कवित्त्वो सवैया-32 पन्ना से सुरू भइल बा। एह सब के जवन चीज जवना पन्ना में बा तेकर-
12.
चौपाई
पहला पना में (पिण्डदान) दान। दूसरा में नारी के बखान॥
तीसरा में गरीब के फैशन। छव में शायरी बिरहा बा कइसन॥
नव में झुलना नाई भाई. देखिहऽ नीके चित्त लगाई॥
नेटुआ के गीत एगारह में। हरिकीर्त्तन गनिका के बारह में॥
यह हरिकीर्त्तन आधा पद के. ना हम हालत जानी गद के॥
भज गोविन्द कहि के बा गाना। बारह पाना में अस्थाना॥
ना विद्या के हालत जनलीं। भोजपुरी बोली में जनलीं॥
सब विद्वानों के पद बन्दे। करहू कृपा जो होय अनन्दे॥
समाधान बा देखबे लायक। नाम के महिमा बा सुखदायक॥
नाई भाई देखिहऽ नीके. देखब उपमा रामायण जी के॥
नाई जाति के बा सवैया। कर्म जवन हउवे पढ़वैया॥
कविता सवैया 27 माहीं। कहत 'भिखारी' बिलोके के चाहीं॥
मानमुख जगह लिखत हम बानी। अवरु ललौकी देखत खानी॥
आठा पना में खोज लगइहऽ। हद कहि-कहि के गाना गइहऽ॥
राम नाम के महिमा भाई. चौआलीस में बा चौपाई॥
दोहा
तब भिखारी शंका समाधान, शुरू होखत बा अब।
चौदह पन्ना में देखिये, पन्ना उलाट कर सब।
वार्तिक:
हम नकल के काम करिला। जइसे रामजी का अली मूरती के नकल सोना के चाहे पीतर के कारीगर लोग। नकल बनावेला। होगी मूरति क साधु, पण्डित, राजा, गृहस्थ, सरगुन, भगवान के मननीहार पूजा करेला लोग। जइसे बाल्मीकि पुस्तक के नकल, रामलीला, भगवान पुस्तक, के नकल रासलीला होखेला। सादी में टीपन के नकल उतार के दियाला, जेह से गनना कइल जाला। खतियान के नकल मोकदमा का नकल से काम चलता बा। तइसे नकल से हमार काम चलत बा। सत गुरु शिवजी सादी में भूत के नाच भइल ह। उपर लिखल-सोरठा देख लेहल जाई, छन्द का बाद में बा। रामलीला, रासलीला, यात्रा दल में नाच होखेला। समय-समय पर तइसे हमरा मण्डली में नाच होखला समय-समय पर।
वार्तिक:
भिखारी हरिकीर्त्तन किताब में आठो काण्ड रामायण के एक हरिकीर्त्तन। समूचा भगवत के एक हरिकीर्त्तन। सीता राम नाम लिखावट के एक हरिकीर्त्तन। रामजी का बिबाह के हरिकीर्त्तन। दशरथ जी जनक जी का खानदान के नाम लगातार इकट्ठा कइले बाटे-कृष्ण जी का जन्म के सोहर बधइया। ऊपर के चौपाई देखे से मालूम हो जाई. शिवजी के हरिकीर्त्तन देहल बाटे।
चौपाई
बारह सौ पंचानबे जहिया, सुदि पूस पंचमी रहे तहिया।
रोज सोमार ठीक दुपहरिया, जन्म भइल ओही घरिया॥
जे भिखारी हरिकीर्त्तन पढ़ीहन, चौबीस पना में खोजी करिहन।
जीवन चरित्र तहाँ मिल जाई, बार्तिक, दोहा बा चौपाई॥
दशरथ जनक बंशावली बाटे, जब केहू लगीहन पन्ना उलाटे।
बीस पन्ना में दशरथ जी के, बाइस में जनक के लउकी नीचे॥
आठा कांड रामायण हउअन, एक हरिकीर्त्तन में होई गउअन।
चार पन्ना के भीतर माहीं, खोजत पहिले जात लखाहीं॥
पूरा भागवत हउवन जतिना, एक हरिकीर्त्तन के फल ततिना।
से छव पना में खोज करी जे, जय गोपाल कही अमृत पीजे॥
पना अठापरह में बा सोहर, कृष्णचन्द्र के जन्म मनोहर।
उनइस पना में बाजत बधइआ, जाचक पावत बस्तर गइआ॥
राम बिबाह के परिछावन, चौदह पना में मिली सोहावन।
सीताराम लिखवट तन में, से बा दुई पना के बन में॥
दोहा
उन्नीस सौ चौवालीस अगहन, कृष्ण बारह रविवार,
बाल्मीक भागवत हरिकीर्त्तन, गान भइल परचार॥
हरिकीर्त्तन दोहा
जे भिखारी हरिकीर्तन पढ़ी, सुनी गुनी मन लाय।
अन्त अमरपुर बास करी, जीवन भर सुख पाया॥
दोहा
बलवन टोला गंगा सरपुग सोन भद्र के धार।
तिरबेनी असनान पान के महिमा अपरंपार॥