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"अपनी बात/वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’" के अवतरणों में अंतर

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मेरा उपनाम ‘अकेला’ है लेकिन मैं ‘अकेला’ नहीं हूँ । मेरे साथ बहुत लोग हैं। अपने उन्हीं साथियों की वजह से मैं ‘शेष बची चौथाई रात’ के दर्द भरे आखि़री पहर से उबर कर ‘सुब्ह की दस्तक’ सुन सका हूँ । अब मुझे रात से कोई शिकायत नहीं-
 
मेरा उपनाम ‘अकेला’ है लेकिन मैं ‘अकेला’ नहीं हूँ । मेरे साथ बहुत लोग हैं। अपने उन्हीं साथियों की वजह से मैं ‘शेष बची चौथाई रात’ के दर्द भरे आखि़री पहर से उबर कर ‘सुब्ह की दस्तक’ सुन सका हूँ । अब मुझे रात से कोई शिकायत नहीं-
  
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व्यंग्यकार श्री संजय खरे ‘संजू’ और कहानीकार, समीक्षक श्री सत्यम् श्रीवास्तव, जो मुझे अग्रजवत् सम्मान देते हैं, ने भी अपने स्तर पर मुझे सहयोग प्रदान किया । इन दोनों अनुजों के उज्जवल भविष्य की मैं कामना करता हूँ ।
 
व्यंग्यकार श्री संजय खरे ‘संजू’ और कहानीकार, समीक्षक श्री सत्यम् श्रीवास्तव, जो मुझे अग्रजवत् सम्मान देते हैं, ने भी अपने स्तर पर मुझे सहयोग प्रदान किया । इन दोनों अनुजों के उज्जवल भविष्य की मैं कामना करता हूँ ।
  
                              ''' वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’'''
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                              '''-[[वीरेन्द्र खरे 'अकेला']]''
 
                                     18.02.2005
 
                                     18.02.2005
 
                           ''' छत्रसाल नगर, छतरपुर (म.प्र.)'''
 
                           ''' छत्रसाल नगर, छतरपुर (म.प्र.)'''
 
   
 
   
 
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19:14, 8 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

मेरा उपनाम ‘अकेला’ है लेकिन मैं ‘अकेला’ नहीं हूँ । मेरे साथ बहुत लोग हैं। अपने उन्हीं साथियों की वजह से मैं ‘शेष बची चौथाई रात’ के दर्द भरे आखि़री पहर से उबर कर ‘सुब्ह की दस्तक’ सुन सका हूँ । अब मुझे रात से कोई शिकायत नहीं-

तुझसे अब क्या शिकायतें ऐ रात
सुन रहा हूँ मैं सुब्ह की दस्तक'

‘सुब्ह की जो दस्तक’ ईश्वर ने मुझ तक पहुँचाई है उसको मैं आप तक पहुँचाने के लिए बहुत समय से संकल्पिक था और इस संकल्प को पूरा करने में सार्थक प्रकाशन, नई दिल्ली के संचालक डॉ.कृष्णदेव शर्मा, प्रणवानन्द पब्लिक ट्रस्ट के अध्यक्ष संत स्वरूप श्री शिव नारायण खरे, वरिष्ठ साहित्यकार-डॉ.गंगाप्रसाद बरसैंया, श्री रामजी लाल चतुर्वेदी और श्री शिवभूषण सिंह गौतम आदि आदरणीयों का आशीर्वाद, सहयोग और मार्गदर्शन बहुत महत्वपूर्ण है । इन सभी विद्वानों का मैं हृदय से आभारी हूँ ।

प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. बहादुर सिंह परमार, जाने माने शायर मौलाना हारून ‘अना’ क़ासमी,ओजस्वी कवि श्री श्रीप्रकाश पटैरिया ‘हृदयेश’, लघुकथाकार श्री निहाल अहमद सिद्दीकी, शायर श्री अज़ीज़ रावी, कवि श्री रमेश चौरसिया ‘प्रशान्त’ और साहित्य मर्मज्ञ श्री सतीश अवस्थी मेरे ऐसे अग्रज हैं जिनका सहयोग और मार्गदर्शन हर अच्छे कार्य के लिए मिलता ही है, ‘सुब्ह की दस्तक’ को आप तक पहुँचाने में भी मिला । इन सब का मैं बहुत बहुत आभारी हूँ ।

व्यंग्यकार श्री संजय खरे ‘संजू’ और कहानीकार, समीक्षक श्री सत्यम् श्रीवास्तव, जो मुझे अग्रजवत् सम्मान देते हैं, ने भी अपने स्तर पर मुझे सहयोग प्रदान किया । इन दोनों अनुजों के उज्जवल भविष्य की मैं कामना करता हूँ ।

                              '-वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
                                    18.02.2005
                            छत्रसाल नगर, छतरपुर (म.प्र.)