भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अपनी बेताबी से उनको बेखबर समझे हैं हम / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ()
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की  / गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की  / गुलाब खंडेलवाल
 
}}
 
}}
 +
[[category: ग़ज़ल]]
 
<poem>
 
<poem>
  

01:22, 21 मई 2010 का अवतरण


अपनी बेताबी से उनको बेखबर समझे हैं हम
फिर भी कुछ है प्यार का उनपर असर, समझे हैं हम

ये तड़पती चितवनें, ये धड़कनें दिल की उदास
कोई समझे या नहीं समझे, मगर समझे हैं हम

दो घड़ी रोना-कलपना, दो घड़ी मस्ती के रंग
आपकी आँखों का इनको खेल भर समझे हैं हम

देखकर भी हमको होठों पर हँसी आयी नहीं
आज कुछ बदली हुई है वह नज़र, समझे हैं हम

तोड़ ले जाएगा कोई तुझको दम भर में गुलाब!
प्यार के ये रंग होंगे बेअसर, समझे हैं हम