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अपनी ही खुद्दारियों से क्या ज़रा घायल हुए / अनिरुद्ध सिन्हा

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अपनी ही खुद्दारियों से क्या ज़रा घायल हुए
हर गली, कूचे में चर्चा है कि हम पागल हुए

खिड़कियाँ खामोश हैं सब आहटें सहमी हुईं
क्या वजह है चील कौवे गिद्ध सब चंचल हुए

मौसमों के आइने में खंजरों के अक्स थे
आज भी ताज़ा हैं दिल में हादिसे जो कल हुए

काग़ज़ी पौधे यहाँ इतने लगाए हैं कि अब
दफ़्तरों में फ़ाइलों के हर तरफ़ जंगल हुए

प्रेम के कुछ इस तरह होते थे अपने ही मिज़ाज
आँख से टपके हुए आँसू भी गंगाजल हुए