Last modified on 20 अगस्त 2013, at 08:38

अपने दिल में डर / मजीद 'अमज़द'

अपने दिल में डर हो तो ये बादल किस को लुभा सकते हैं
अपने दिल में डर हो तो सब रूतें डरावनी लगती हैं और अपनी तरफ़ ही गर्दन
झुक जाती है

ये तो अपना हौसला था
इतनें अंदेशों में भी
नज़रें अपनी जानिब नहीं उठीं और इस घनघोर घने कोहरे में जा डूबी हैं
और अब मेरी सारी दुनिया इस कोहरे में नहाई हुई हरियावल का हिस्सा है
मेरी ख़ुशियाँ भी और डर भी

और इसी रस्ते पर मैं ने लोहे के हल्क़ों में
इक क़ैदी को देखा
आहन चेहरा सिपाही की जर्सी का रग उस क़ैदी के रूख़ पर था
हर अंदेशा तो इक कुंडी है जो दिल को अपनी जानिब खींच के रखती है और वो कै़दी भी
खिचा हुआ था अपने दिल के ख़ौफ़ की जानिब जिस की कोई रूत नहीं होती
मैं भी अपने अंदेशों का क़ैदी हूँ लेकिन उस क़ैदी के अंदेशे तो
इक मेरे सिवा सब के हैं
इक वही अपने दुख की कुंडी
जिस के खिंचाव से इक इक गर्दन अपनी जानिब झुकी हुई है
ऐसे में अब कौन घटाओं भरी सुब्ह-ए-बहाराँ को देखेगा
जो इन बोर लदे अंदेशों पर यूँ झूकी हुई है आमों के बाग़ों में
मिरी रूह के सामने