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अपने द्वार बन्द मत करो / वाल्ट ह्विटमैन / दिनेश्वर प्रसाद

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मेरे लिए अपने द्वार बन्द मत करो, अहँकारी पुस्तकालयो !
क्योंकि जो तुम्हारे परिपूर्ण ख़ानों में नहीं था,
किन्तु जिसकी ज़रूरत सबसे अधिक थी,
मैं वही ले आया हूँ।

मैंने युद्ध से सीधे-सीधे उपजी एक पुस्तक लिखी है।
मेरी पुस्तक के शब्द कुछ नहीं; उसका विचलन ही सब कुछ है,
एक भिन्न प्रकार की पुस्तक, जिसका न तो दूसरी
पुस्तकों से सम्बन्ध है, जो न बुद्धि से अनुभूत है,
किन्तु उसकी असँख्य व्यँजनाएँ हर पृष्ठ पर
रोमाँचित करने वाली होंगी ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : दिनेश्वर प्रसाद