अपने बचने के लिए कोई सहारा ढूँढ़ लूँ ।
झूट की बन्दूक़ है, मज़बूत काँधा ढूँढ़ लूँ ।
तुम अगर हर गाम पर उँगली पकड़ना छोड़ दो,
तब ये मुम्किन है कि मैं भी अपना रस्ता ढूँढ़ लूँ ।
मैं भी उसके ग़म में हो जाऊँ बराबर का शरीक,
मैं भी रोने का कोई ऐसा तरीक़ा ढूँढ़ लूँ ।
फिर न खटकेगी मुझे ये बेरुख़ी अहबाब की,
एक कोई अपने जैसा पीने वाला ढूँढ़ लूँ ।
मैं जला दूँगा लहू दिल का मगर पहले ’नदीम’,
रौशनी देनी है जिसको वो अन्धेरा ढूँढ़ लूँ ।