भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपने बचपन का सफ़र याद आया / ममता किरण

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:11, 31 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ममता किरण }} {{KKCatGhazal}} <poem> अपने बचपन का सफ़र याद आया मु…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने बचपन का सफ़र याद आया
मुझको परियों का नगर याद आया

कोई पत्ता हिले न जिसके बिना
रब वहीं शाम-ओ-सहर याद आया

इतना शातिर वो हुआ है कैसे
है सियासत का असर याद आया

रोज़ क्यूँ सुर्ख़ियों में रहता है
है यही उसका हुनर, याद आया

जब कोई आस ही बाक़ी न बची
मुझको बस तेरा ही दर याद आया

जो नहीं था कभी मेरा अपना
क्यूँ मुझे आज वो घर याद आया

उम्र के इस पड़ाव पे आकर
क्यूँ जुदा होने का डर याद आया

माँ ने रख्खा था हाथ जाते हुए
फिर वही दीद-ऐ-तर याद आया

जिसकी छाया तले ‘किरण’ थे सब
घर के आँगन का शजर याद आया