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अपने बहते हुए लहू का दोष मढ़ें किस सर पर / डी. एम. मिश्र

अपने बहते हुए लहू का दोष मढ़ें किस सर पर
हमने ही ज़ालिम हाथों में पकड़ाया है खंजर

भूख ग़रीबी बेकारी से चेहरे स्याह पड़े हैं
लाल मगर होते जाते हैं वोट- बैंक के दफ़्तर

मंदिर- मस्ज़िद के झगड़े में कितनी चोटें खाये
कितनी बार शहीद हुए हम जाति-धर्म के ऊपर

इन नेताओं की फ़ितरत को पहले आप समझ लें
बाहर से ये लगें विरोधी,एक हैं लेकिन अन्दर

भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा कैसे देश बचेगा
अब सौंपें पतवार बताओ किस नाविक को चुनकर