Last modified on 3 जुलाई 2010, at 10:30

अपने भीतर / गुरमीत बेदी

 
अपने भीतर

धूप की शरारत के बावजूद
जैसे धरती बचाकर रखती है
थोड़ी-सी नमी अपने भीतर
पहाड़ बचाकर रखते हैं
कोई हरा कोना अपने वक्ष में
तालाब बचाकर रखता है
कोई एक बूँद अपनी हथेली में
पेड़ बचाकर रखते हैं
टहनियों और पत्तों के लिए जीवन रस
फूल बचाकर रखते हैं
खुशबू अपने आवरण में
चिड़िया बचाकर रखती है
मौसम से जूझने की जिजीविषा

वैसे ही मैंने बचाकर रखा है
अपने भीतर
तुम्हारे होने का अहसास।