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"अपने वश में कुछ नहीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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फूलों की मुस्कान -सा, हो तेरा संसार।
 
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रोम -रोम सुरभित रहे,बरसे निर्मल प्यार।।
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विनती की भगवान से,मन है बहुत अधीर।
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आँचल में दे दो मुझे,प्रियवर की सब पीर।।
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'''अपने वश में कुछ नहीं, विधना का यह खेल।'''
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कौन बाट में छूटता,कौन करेगा मेल।।
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फूल और खुशबू  रहें, निशदिन बहुत करीब।
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शूलों को  होता कहाँ,ऐसा प्यार  नसीब ॥
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मिट जाएँगी दूरियाँ, होगा दुख का नाश।
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आलिंगन में बाँधकर,कस लेना भुजपाश।
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तुम प्राणों की प्यास हो,नम आँखों का नूर।
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पल भर कर पाता नहीं,तुमको मन से दूर।
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जब, जहाँ और जिस घड़ी,तुम होते बेचैन।
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दूर यहाँ परदेस में, भर -भर आते नैन।।
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खुशी देख पाते नहीं,इस दुनिया के लोग ।
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जलने का इनको लगा,युगों युगों से रोग।।
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हम तुम कुछ जाने नहीं,कितनी गहरी धार।
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गहन प्यार की नाव पर,चले सिन्धु के पार।
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तेरे दुख में जागते,कटती जाती रात।
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तपता माथा चूमते,हुआ अचानक प्रात।।
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कुछ मैंने माँगा नहीं,बस दो  बूँदें प्यार।
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बदले में दे दो मुझे, अपने दुख का भार।।
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अपने के आगे बही ,मन की सारी पीर।
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हँसी खो गई भीड़ में,मन पर खिंची लकीर
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हम तो खाली हाथ हैं, कुछ  ना बचा जनाब।
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कल जब हम होंगे नहीं, देगा कौन हिसाब ॥
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जितना हम झुकते गए,उतनी पड़ती मार।
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हम  सदैव बेशर्म थे, कैसे जाते हार ।
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फूलों- सा मन दे दिया,फिर छिड़के अंगार।
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तेरी तू ही जानता,क्या लीला करतार।।
  
 
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20:15, 14 मई 2019 के समय का अवतरण


76
फूलों की मुस्कान -सा, हो तेरा संसार।
रोम -रोम सुरभित रहे,बरसे निर्मल प्यार।।
77
विनती की भगवान से,मन है बहुत अधीर।
आँचल में दे दो मुझे,प्रियवर की सब पीर।।
78
अपने वश में कुछ नहीं, विधना का यह खेल।
कौन बाट में छूटता,कौन करेगा मेल।।
79
फूल और खुशबू रहें, निशदिन बहुत करीब।
शूलों को होता कहाँ,ऐसा प्यार नसीब ॥
80
मिट जाएँगी दूरियाँ, होगा दुख का नाश।
आलिंगन में बाँधकर,कस लेना भुजपाश।
81
तुम प्राणों की प्यास हो,नम आँखों का नूर।
पल भर कर पाता नहीं,तुमको मन से दूर।
82
जब, जहाँ और जिस घड़ी,तुम होते बेचैन।
दूर यहाँ परदेस में, भर -भर आते नैन।।
83
खुशी देख पाते नहीं,इस दुनिया के लोग ।
जलने का इनको लगा,युगों युगों से रोग।।
84
हम तुम कुछ जाने नहीं,कितनी गहरी धार।
गहन प्यार की नाव पर,चले सिन्धु के पार।
85
तेरे दुख में जागते,कटती जाती रात।
तपता माथा चूमते,हुआ अचानक प्रात।।
86
कुछ मैंने माँगा नहीं,बस दो बूँदें प्यार।
बदले में दे दो मुझे, अपने दुख का भार।।
87
अपने के आगे बही ,मन की सारी पीर।
हँसी खो गई भीड़ में,मन पर खिंची लकीर
88
हम तो खाली हाथ हैं, कुछ ना बचा जनाब।
कल जब हम होंगे नहीं, देगा कौन हिसाब ॥
89
जितना हम झुकते गए,उतनी पड़ती मार।
हम सदैव बेशर्म थे, कैसे जाते हार ।
90
फूलों- सा मन दे दिया,फिर छिड़के अंगार।
तेरी तू ही जानता,क्या लीला करतार।।