"अपने वश में कुछ नहीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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− | + | 76 | |
फूलों की मुस्कान -सा, हो तेरा संसार। | फूलों की मुस्कान -सा, हो तेरा संसार। | ||
रोम -रोम सुरभित रहे,बरसे निर्मल प्यार।। | रोम -रोम सुरभित रहे,बरसे निर्मल प्यार।। | ||
− | + | 77 | |
विनती की भगवान से,मन है बहुत अधीर। | विनती की भगवान से,मन है बहुत अधीर। | ||
आँचल में दे दो मुझे,प्रियवर की सब पीर।। | आँचल में दे दो मुझे,प्रियवर की सब पीर।। | ||
− | + | 78 | |
'''अपने वश में कुछ नहीं, विधना का यह खेल।''' | '''अपने वश में कुछ नहीं, विधना का यह खेल।''' | ||
कौन बाट में छूटता,कौन करेगा मेल।। | कौन बाट में छूटता,कौन करेगा मेल।। | ||
− | + | 79 | |
फूल और खुशबू रहें, निशदिन बहुत करीब। | फूल और खुशबू रहें, निशदिन बहुत करीब। | ||
शूलों को होता कहाँ,ऐसा प्यार नसीब ॥ | शूलों को होता कहाँ,ऐसा प्यार नसीब ॥ | ||
− | + | 80 | |
मिट जाएँगी दूरियाँ, होगा दुख का नाश। | मिट जाएँगी दूरियाँ, होगा दुख का नाश। | ||
आलिंगन में बाँधकर,कस लेना भुजपाश। | आलिंगन में बाँधकर,कस लेना भुजपाश। | ||
− | + | 81 | |
तुम प्राणों की प्यास हो,नम आँखों का नूर। | तुम प्राणों की प्यास हो,नम आँखों का नूर। | ||
पल भर कर पाता नहीं,तुमको मन से दूर। | पल भर कर पाता नहीं,तुमको मन से दूर। | ||
− | + | 82 | |
जब, जहाँ और जिस घड़ी,तुम होते बेचैन। | जब, जहाँ और जिस घड़ी,तुम होते बेचैन। | ||
दूर यहाँ परदेस में, भर -भर आते नैन।। | दूर यहाँ परदेस में, भर -भर आते नैन।। | ||
− | + | 83 | |
खुशी देख पाते नहीं,इस दुनिया के लोग । | खुशी देख पाते नहीं,इस दुनिया के लोग । | ||
जलने का इनको लगा,युगों युगों से रोग।। | जलने का इनको लगा,युगों युगों से रोग।। | ||
− | + | 84 | |
हम तुम कुछ जाने नहीं,कितनी गहरी धार। | हम तुम कुछ जाने नहीं,कितनी गहरी धार। | ||
गहन प्यार की नाव पर,चले सिन्धु के पार। | गहन प्यार की नाव पर,चले सिन्धु के पार। | ||
− | + | 85 | |
तेरे दुख में जागते,कटती जाती रात। | तेरे दुख में जागते,कटती जाती रात। | ||
तपता माथा चूमते,हुआ अचानक प्रात।। | तपता माथा चूमते,हुआ अचानक प्रात।। | ||
− | + | 86 | |
कुछ मैंने माँगा नहीं,बस दो बूँदें प्यार। | कुछ मैंने माँगा नहीं,बस दो बूँदें प्यार। | ||
बदले में दे दो मुझे, अपने दुख का भार।। | बदले में दे दो मुझे, अपने दुख का भार।। | ||
− | + | 87 | |
अपने के आगे बही ,मन की सारी पीर। | अपने के आगे बही ,मन की सारी पीर। | ||
हँसी खो गई भीड़ में,मन पर खिंची लकीर | हँसी खो गई भीड़ में,मन पर खिंची लकीर | ||
− | + | 88 | |
हम तो खाली हाथ हैं, कुछ ना बचा जनाब। | हम तो खाली हाथ हैं, कुछ ना बचा जनाब। | ||
कल जब हम होंगे नहीं, देगा कौन हिसाब ॥ | कल जब हम होंगे नहीं, देगा कौन हिसाब ॥ | ||
− | + | 89 | |
जितना हम झुकते गए,उतनी पड़ती मार। | जितना हम झुकते गए,उतनी पड़ती मार। | ||
हम सदैव बेशर्म थे, कैसे जाते हार । | हम सदैव बेशर्म थे, कैसे जाते हार । | ||
− | + | 90 | |
फूलों- सा मन दे दिया,फिर छिड़के अंगार। | फूलों- सा मन दे दिया,फिर छिड़के अंगार। | ||
तेरी तू ही जानता,क्या लीला करतार।। | तेरी तू ही जानता,क्या लीला करतार।। | ||
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20:15, 14 मई 2019 के समय का अवतरण
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फूलों की मुस्कान -सा, हो तेरा संसार।
रोम -रोम सुरभित रहे,बरसे निर्मल प्यार।।
77
विनती की भगवान से,मन है बहुत अधीर।
आँचल में दे दो मुझे,प्रियवर की सब पीर।।
78
अपने वश में कुछ नहीं, विधना का यह खेल।
कौन बाट में छूटता,कौन करेगा मेल।।
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फूल और खुशबू रहें, निशदिन बहुत करीब।
शूलों को होता कहाँ,ऐसा प्यार नसीब ॥
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मिट जाएँगी दूरियाँ, होगा दुख का नाश।
आलिंगन में बाँधकर,कस लेना भुजपाश।
81
तुम प्राणों की प्यास हो,नम आँखों का नूर।
पल भर कर पाता नहीं,तुमको मन से दूर।
82
जब, जहाँ और जिस घड़ी,तुम होते बेचैन।
दूर यहाँ परदेस में, भर -भर आते नैन।।
83
खुशी देख पाते नहीं,इस दुनिया के लोग ।
जलने का इनको लगा,युगों युगों से रोग।।
84
हम तुम कुछ जाने नहीं,कितनी गहरी धार।
गहन प्यार की नाव पर,चले सिन्धु के पार।
85
तेरे दुख में जागते,कटती जाती रात।
तपता माथा चूमते,हुआ अचानक प्रात।।
86
कुछ मैंने माँगा नहीं,बस दो बूँदें प्यार।
बदले में दे दो मुझे, अपने दुख का भार।।
87
अपने के आगे बही ,मन की सारी पीर।
हँसी खो गई भीड़ में,मन पर खिंची लकीर
88
हम तो खाली हाथ हैं, कुछ ना बचा जनाब।
कल जब हम होंगे नहीं, देगा कौन हिसाब ॥
89
जितना हम झुकते गए,उतनी पड़ती मार।
हम सदैव बेशर्म थे, कैसे जाते हार ।
90
फूलों- सा मन दे दिया,फिर छिड़के अंगार।
तेरी तू ही जानता,क्या लीला करतार।।