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4676
फूलों की मुस्कान -सा, हो तेरा संसार।
रोम -रोम सुरभित रहे,बरसे निर्मल प्यार।।
4777
विनती की भगवान से,मन है बहुत अधीर।
आँचल में दे दो मुझे,प्रियवर की सब पीर।।
4878
'''अपने वश में कुछ नहीं, विधना का यह खेल।'''
कौन बाट में छूटता,कौन करेगा मेल।।
49 79
फूल और खुशबू रहें, निशदिन बहुत करीब।
शूलों को होता कहाँ,ऐसा प्यार नसीब ॥
5080
मिट जाएँगी दूरियाँ, होगा दुख का नाश।
आलिंगन में बाँधकर,कस लेना भुजपाश।
5181
तुम प्राणों की प्यास हो,नम आँखों का नूर।
पल भर कर पाता नहीं,तुमको मन से दूर।
5282
जब, जहाँ और जिस घड़ी,तुम होते बेचैन।
दूर यहाँ परदेस में, भर -भर आते नैन।।
5383
खुशी देख पाते नहीं,इस दुनिया के लोग ।
जलने का इनको लगा,युगों युगों से रोग।।
5484
हम तुम कुछ जाने नहीं,कितनी गहरी धार।
गहन प्यार की नाव पर,चले सिन्धु के पार।
5585
तेरे दुख में जागते,कटती जाती रात।
तपता माथा चूमते,हुआ अचानक प्रात।।
5686
कुछ मैंने माँगा नहीं,बस दो बूँदें प्यार।
बदले में दे दो मुझे, अपने दुख का भार।।
5787
अपने के आगे बही ,मन की सारी पीर।
हँसी खो गई भीड़ में,मन पर खिंची लकीर
5888
हम तो खाली हाथ हैं, कुछ ना बचा जनाब।
कल जब हम होंगे नहीं, देगा कौन हिसाब ॥
5989
जितना हम झुकते गए,उतनी पड़ती मार।
हम सदैव बेशर्म थे, कैसे जाते हार ।
6090
फूलों- सा मन दे दिया,फिर छिड़के अंगार।
तेरी तू ही जानता,क्या लीला करतार।।
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