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अपने सर के नीचे तुम्हारा दायाँ हाथ / मिक्लोश रादनोती

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अपने सर के नीचे तुम्हारा दायाँ हाथ रखकर रात मैं लेटा रहा।
दिन का दुःख अभी बाकी था। मैंने तुम्हें उसे न हटाने को कहा
मैं तुम्हारी नब्ज़ में चलते हुए ख़ून को सुनता रहा।

करीब बारह बजे होंगे जब नींद मुझ पर बाढ़ जैसी आई
उसी तरह अचानक जैसे बहुत पहले पंख-भरे उनींदे बचपन में
आई थी और उसी तरह धीरे-धीरे मुझे झुलाने लगी।

तुम मुझे बता रही हो कि तीन भी नहीं बजे थे
कि मैं चौंककर उठ बैठा, डरा हुआ
बुदबुदाने लगा, कविताएँ पढ़ने लगा, अनर्गल चिल्लाने लगा।

डरी हुई चिड़िया की तरह मैंने अपने हाथ फैला लिए
जो बगीचे में किसी परछाईं को देखकर अपने पंख फड़फड़ाने लगती है
मैं कहाँ जा रहा था? किस तरह की मौत मुझे डरा रही थी?

मेरी अपनी, तुमने मुझे चुप किया और बैठकर आँखें मूंदे मैं तुमसे चुप होता रहा
मैं चुपचाप लेट गया, आतंकों की राह इंतज़ार करती रही।
और मैं सपने देखता रहा। शायद किसी और तरह की मौत के।


रचनाकाल : 8 अप्रैल 1941

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे