भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने होने से इनकार किए जाते हैं / जलील आली
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:20, 6 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जलील आली }} {{KKCatGhazal}} <poem> अपने होने से इ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अपने होने से इनकार किए जाते हैं
हम कि रास्ता हम-वार किए जाते हैं
रोज़ अब शहर में सजते हैं तिजारत-मेले
लोग सहनों को भी बाज़ार किए जाते हैं
डालते हैं वो जो कश्कोल में साँसें गिन कर
कल के सपने भी गिरफ़्तार किए जाते हैं
किस को मालूम यहाँ असल कहानी हम तो
दरमियाँ का कोई किरदार किए जाते हैं
दिल पे कुछ और गुज़रती है मगर क्या कीजे
लफ़्ज़ कुछ और ही इज़हार किए जाते हैं
मेरे दुश्मन को ज़रूरत नहीं कुछ करने की
उस से अच्छा तो मेरे यार किए जाते हैं