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अपन महलिया से दादीजी निकललि / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अपन महलिया सेॅ दादीजी निकललि।
डोलाबइत<ref>डुलाते हुए</ref> हे कँगना धीरे धीरे।
बजाबइत<ref>बजाते हुए</ref> हे बिछिआ<ref>पैर का एक आभूषण</ref> धीरे धीरे॥1॥
बजाबहु हे बिछिआ धीरे धीरे।
डोलाबहु हे कँगना धीरे धीरे।
चुमाबहु हे ललना धीरे धीरे॥2॥
आपन महलिया सेॅ अम्माँजी निकललि।
बजाबहु हे बिछिआ धीरे धीरे।
डोलाबहु हे कँगना धीरे धीरे।
चुमाबहु हे ललना धीरे धीरे॥3॥

शब्दार्थ
<references/>