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अपराजिता / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

(गीत)
हारीं नहीं, देख, आँखें--
परी नागरी की;
नभ कर गंई पार पाखें
परी नागरी की।
तिल नीलिमा को रहे स्नेह से भर
जगकर नई ज्योति उतरी धरा पर,
रँग से भरी हैं, हरी हो उठीं हर
तरु की तरुण-तान शाखें;
परी नागरी की--
हारीं नहीं, देख, आँखें।