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|रचनाकार=कुबेरनाथ राय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=कंथा-मणि / कुबेरनाथ राय<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
यह काया है शुष्क काष्ठ, पत्रहीन छाया विहीन <br />
इस पर शुक-पिक रैन-बसेरा न लें तो क्या? <br />
पथिक ठीक ही है क्यों पछताने इस तक आयें <br />
हर्ज नहीं, पथ भूले नहीं इधर मधु की माया। <br />
<br />
जीवन पस्त रहा टूटता विरस अनुदिन <br />
तब भी तो यह काया रही गान- मुखरा! <br />
षट्ऋतुओं के रथ आये, फिर लौटे बार-बार <br />
इस शुष्क काठ पर भी गन्धर्वों का गायन उतरा। <br />
<br />
बन्धु, सदैव सरस का गान शुष्क ही है लिखता <br />
अनगढ़ सीपी के अस्थिशेष में उजला मोती पलता, <br />
यह काया है काठ तार जिस पर एक चढ़ा <br />
जिस पर स्वर का वर्त्तिनाग अहरह जलता। <br />
श्वेत रह गये छूँछे पानी गंदला बादल लाया, <br />
पंकज खिलता वहीं जहाँ हो सुलभ पंक की माया। <br />
<br />
''[1962 ]''<br />
</poem></div>Lalit Kumar