Last modified on 15 जनवरी 2009, at 21:45

अपलक / सत्येन्द्र श्रीवास्तव

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:45, 15 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्येन्द्र श्रीवास्तव |संग्रह= }} <Poem> चाँद ने मुझ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चाँद ने मुझमें देखा
         मैंने चाँद में
देखते ही रहे
         हम रुके नहीं
मिले थे नयन और
         झुके नहीं
                   भर आईं
                   मेरी ही आँखें
                   बाद में।