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{{KKRachna
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
|संग्रह=साये में धूप / दुष्यन्त दुष्यंत कुमार
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[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal‎}}‎<poem>
अपाहिज व्यथा को वहन कर रहा हूँ
 
तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ
 
ये दरवाज़ा खोलें तो खुलता नहीं है
 
इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ
 
अँधेरे में कुछ ज़िन्दगी होम कर दी
 
उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ
 
वे संबंध अब तक बहस में टँगे हैं
 जिन्हें रात—दिन रात-दिन स्मरण कर रहा हूँ  
मैं अहसास तक भर गया हूँ लबालब
 
तेरे आँसुओं को नमन कर रहा हूँ
 
समालोचकों की दुआ है कि मैं फिर
 
सही शाम से आचमन कर रहा हूँ
</poem>
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