भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपेक्षा / जय गोस्वामी / पवन साव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जितनी बार घण्टी बजती है
सोचता हूँ तुम आई हो

दरवाज़ा खोलकर देखता हूँ
कोई और होता है

मन में ज्वार उठता है
मन में ज्वार मर जाता है ।

बांग्ला से अनुवाद : पवन साव