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अप्पन बलेमु जी के बुझा लेबइ हे सखिया / मगही

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अप्पन<ref>अपना</ref> बलेमु<ref>बल्लभ, स्वामी</ref> जी के बुझा<ref>समझदार अपने अनुकूल कर लूँगी</ref> लेबइ हे सखिया।
अप्पन सइयाँ जी के समुझा लेबइ हे सखिया॥1॥
काहे के बाजुबन<ref>बाजूबन्द, बाँह में पहनने का आभूषण विशेष, भुजबन्द</ref> काहे के टिकुली हे।
काहे के नथिया झमकयबइ<ref>झमकाऊँगी</ref> हे सखिया॥2॥
सोने के बाजुबन, रूपे के टिकुलिया हे।
परेम<ref>प्रेम</ref> के नथिया झमकयबइ हे सखिया॥3॥
कथि के सेजिया कथि के रे झालर।
कथि के बेनिया<ref>पंखा, व्यजन</ref> डोलयबइ<ref>डुलाऊँगी</ref> हे सखिया॥4॥
परेम के सेजिया, परेम के झालर।
परेम के बेनिया डोलयबइ हे सखिया॥5॥
सोने रूप सइयाँ मोरा परेम पियासल।
हम धनि परेम पियासी हे सखिया॥6॥
अध राति ले<ref>तक</ref> हम रँग रस बिलसली<ref>विलास किया</ref>।
कउनी मोरा अँखिया झँपायल<ref>झपकी आ गई, आँख मुँद गई</ref> हे सखिया॥7॥
भारे उठि देखली सइयाँ मोरा भागल।
सइयाँ के कहाँ जाइ खोजूँ हे सखिया॥8॥
रने बने खोजलूँ राहे बाटे घुमलूँ।
कउन सइयाँ के बतावे हे सखिया॥9॥
बटिया में मिललन सतगुरु हमरा।
ओहि सइयाँ से मिलवलन हे सखिया॥10॥

शब्दार्थ
<references/>