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अप्पू जी, भैया हाथी जी / सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त'

हिलते डुलते चलते जी
अप्पू, जी भैया हाथी जी।

दिखने में है कितने भारी
लेकिन आंखें छोटी जी।
सूँड़ ही इनका हाथ है भाई
अप्पू भी कहलाते जी॥

हम सबके हैं साथी जी
पप्पू जी भैया हैप्पी जी।

पंखे जैसे काम है इनके
हवा लगाते रहते जी।
छोटी पतली काली सी
पूँछ हिलाते रहते जी॥

बच्चे करते सवारी इनकी
अप्पू जी, भैया हाथी जी।

रखते हैं दो दाँत बड़े,
कभी न जिससे खाते जी।
हैं ये दाँत दिखाने के
खाने के तो और हैं जी॥

सबका मन लुभाते जी,
अप्पू जी, भैया हाथी जी।