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अप्प दीपो भव / आनंद 2 / कुमार रवींद्र

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'बुद्ध हुआ जो
वह भी अमर नहीं होता है

'सूर्य सुबह उगता है
ढलता है साँझ हुए
झरते हैं पत्ते
फिर उग आते हैं अँखुए

'पुत्र फसल काट रहा -
          पिता उसे बोता है

'क्रिया यहीं है, भन्ते
जीने की-मरने की
दिया बुझा -नया जला
चौखट पर धरने की

'प्राण...
सदा उड़ता जो रहता
                वह तोता है

'देह-पार भी तो हैं
संज्ञाएँ सूरज की
जन्म-मृत्यु दोनों हैं
घटनाएँ अचरज की

'सोचो, आनन्द
      कहाँ अमृत का सोता है'