भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अप्प दीपो भव / उत्तरकथन / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनी, भाउ !
बुद्धों की तुमने यह गीतकथा

हमने यह नहीं रची
उपजी यह स्वयमेव
छिपे हुए थे मन में
कहीं किसी कोने में बुद्धदेव

उमगे थे
कभी उसी कोने से मोह-व्यथा

सुनते जो हम भीतर
करुणा का भीगा स्वर
गूँज रहा उससे ही है
सबकी साँसों का अन्तःपुर

गई-रात
उसने ही सपने में हमें मथा

घटनाएँ इसमें हैं
अद्भुत अनुरागों की
नहीं मिलेगी तुमको कथा यहाँ
सूखे बैरागों की

नेह भरो
साँसों में - बुद्धों की यही प्रथा