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अप्प दीपो भव / तथागत बुद्ध 3 / कुमार रवींद्र

और ...
वह यशोधरा का बंधन
    बुद्ध हँसे मन-ही-मन

शौर्य-कथा राग की -
स्वयंबर की
हुई किंवदन्ती जो
घर-घर की

शिशु की
किलकारी से भरा-पुरा था आँगन

उन्हीं दिनों मिले उन्हें
तीन गुरू
उनसे ही बुद्धकथा
हुई शुरू

सबके हैं संगी वे-
    रोग-मृत्यु- बूढ़ापन

क्षणिक हुई
यशोधरा -राहुल भी
अर्थहीन हुई देह
और पिता का कुल भी

याद रहा
उन्हें सिर्फ़ आत्मा का ही क्रन्दन