याद बुद्ध को आया
छोड़ा रथ
शुरू हुआ यात्रापथ
मिलीं राह
अनगिन पगडंडियाँ
पीछे रह गयीं सभी
गाँव-गली-मंडियाँ
बीहड़ मग पथरीले
देह छिली
पाँवों की पीर अकथ
याद आई यशोधरा
कई बार
लगा - हुईं साँसें तक
थीं उधार
एक रात आया था
सपने में
छिपकर मन्मथ
गरमी में तपी देह
बरखा में भीजी
बर्फीली हवा चली
उसमें वह छीजी
किन्तु वह तपस्या भी
सारी
गई अकारथ