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अप्प दीपो भव / महाप्रजापति गौतमी 1 / कुमार रवींद्र

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महाप्रजापति गौतमी
            यादों में खोईं

बच्ची थीं
भगिनी का दाय मिला
तुवा हुईं-
उनके भी अंगों में फूल खिला

चले गये गौतम थे
तबसे वे बार-बार रोईं

प्रश्न एक यही उन्हें
था मथता
खोटी थी क्या उनकी
ममता की कोमलता

उस दिन से
पूरी रात कभी नहीं सोईं

पतझर ही पतझर थे
सभी ओर
धुएँ और कोहरे ही
छाये घनघोर

उनने थीं साँसों में
काँटों की अमरबेल बोईं