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अप्प दीपो भव / महाप्रजापति गौतमी 2 / कुमार रवींद्र
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गौतम थे हुए बुद्ध
आये थे कपिलवस्तु
सबका दुख हरने
नन्द ने प्रव्रज्या ली
राहुल ने
और सभी कुँवरों ने
त्यागे सब राग-मोह
छत्र-मुकुट-चँवरों ने
बेकल थीं गौतमी
मन था कि
पाता था नहीं धीर धरने
और तभी गूँजे थे
कानों में बुद्ध-वचन
'जलता है सभी ओर
साँसों का बीहड़ वन
'शमन करो
ताप सभी
बहने दो आँखों से करुणा के झरने
गौतमी हुईं शिष्या
दुक्ख-शोक-भय बीता
भरा अचल नेह-भाव मन में
जो था रीता
मथा नहीं
उनको फिर
आकुल इच्छाओं के भँवर ने