राजा शुद्धोदन की
वाणी है मूक हुई
क्या बोलें -
एक-एककर सारे अहंकार
टूट गये
लगता था
जैसे कुलदेवता
उनसे थे रूठ गये
पता नहीं
कहाँ-कभी उनसे थी चूक हुई
जन्मे सिद्धार्थ थे
चक्रवर्ति बनने को - भिक्षु हुए
निकल आये
शाक्य वंश की उर्वर भूमि में
काँटों के थे अँखुए
साँस कभी
सपना थी - आज वही हूक हुई
आये बुद्ध कपिलवस्तु
रिक्त हुए राजमुकुट-सिंहासन
खाली हैं पड़े हुए
राजमहल-घाट-गाँव-घर-आँगन
वंश चले
राजा की आस टूक-टूक हुई