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"अबकी होली में / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर

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आम कुतरते हुए सुए से
+
होली में  
मैना कहे मुंडेर की ।
+
आना जी  आना  
अबकी होली में ले आना
+
चाहे जो रँग लिए आना ।
भुजिया बीकानेर की
+
भींगेगी देह
 +
मगर याद रहे
 +
मन को भी रंग से सजाना
  
गोकुल, वृन्दावन की हो
 
या होली हो बरसाने की,
 
परदेसी की वही पुरानी
 
आदत है तरसाने की,
 
  
उसकी आँखों को भाती है
+
वर्षों से
कठपुतली आमेर की
+
बर्फ़ जमी प्रीति को  
 +
मद्धम सी आँच पर उबालना,
 +
जाने क्या
 +
चुभता है आँखों में
 +
आना तो फूँककर निकालना,
 +
मैं नाचूँगी
 +
राधा बनकर
 +
तू कान्हा बाँसुरी बजाना
  
इस होली में हरे पेड़ की
 
शाख न कोई टूटे,
 
मिलें गले से गले, पकड़कर
 
हाथ न कोई छूटे,
 
  
हर घर-आँगन महके ख़ुशबू
+
आग लगी
गुड़हल और कनेर की
+
जंगल में या
 +
पलाश दहके हैं,
 +
मेरे भी
 +
आँगन में
 +
कुछ गुलाब महके हैं,
 +
कब तक
 +
हम रखेंगे बाँधकर
 +
ख़ुशबू का है कहाँ ठिकाना
  
चौपालों पर ढोल मजीरे
 
सुर गूँजे करताल के,
 
रूमालों से छूट न पाएँ
 
रंग गुलाबी गाल के,
 
  
फगुआ गाएँ या फिर बाँचेंगे
+
लाल हरे
कविता शमशेर की ।
+
पीले रंगों भींगी
 +
चूनर को धूप में सुखाएँगे,
 +
तुम मन के
 +
पंख खोल उड़ना
 +
हम मन के पंख को छुपाएँगे ,
 +
मन की हर
 +
बँधी गाँठ खोलना
 +
उस दिन तो दरपन हो जाना ।
 +
 
 +
 
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हारेंगे हम ही
 +
तुम जीतना
 +
टॉस मगर जोर से उछालना,
 +
ओ मांझी
 +
धार बहुत तेज़ है
 +
मुझे और नाव को सम्हालना,
 +
नाव से
 +
उतरना जब घाट पर
 +
हाथ मेरी ओर भी बढ़ाना
 
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13:29, 1 नवम्बर 2012 के समय का अवतरण

होली में
आना जी आना
चाहे जो रँग लिए आना ।
भींगेगी देह
मगर याद रहे
मन को भी रंग से सजाना ।


वर्षों से
बर्फ़ जमी प्रीति को
मद्धम सी आँच पर उबालना,
जाने क्या
चुभता है आँखों में
आना तो फूँककर निकालना,
मैं नाचूँगी
राधा बनकर
तू कान्हा बाँसुरी बजाना ।


आग लगी
जंगल में या
पलाश दहके हैं,
मेरे भी
आँगन में
कुछ गुलाब महके हैं,
कब तक
हम रखेंगे बाँधकर
ख़ुशबू का है कहाँ ठिकाना ।


लाल हरे
पीले रंगों भींगी
चूनर को धूप में सुखाएँगे,
तुम मन के
पंख खोल उड़ना
हम मन के पंख को छुपाएँगे ,
मन की हर
बँधी गाँठ खोलना
उस दिन तो दरपन हो जाना ।


हारेंगे हम ही
तुम जीतना
टॉस मगर जोर से उछालना,
ओ मांझी
धार बहुत तेज़ है
मुझे और नाव को सम्हालना,
नाव से
उतरना जब घाट पर
हाथ मेरी ओर भी बढ़ाना ।