भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अबकी होली में / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
होली में  
 
होली में  
 
आना जी  आना  
 
आना जी  आना  
चाहे जो रंग लिए आना |
+
चाहे जो रँग लिए आना
 
भींगेगी देह  
 
भींगेगी देह  
 
मगर याद रहे  
 
मगर याद रहे  
मन को भी रंग से सजाना |
+
मन को भी रंग से सजाना
  
  
 
वर्षों से  
 
वर्षों से  
बर्फ जमी प्रीति को  
+
बर्फ़ जमी प्रीति को  
मद्धम सी आंच पर उबालना ,
+
मद्धम सी आँच पर उबालना,
 
जाने क्या
 
जाने क्या
 
चुभता है आँखों में  
 
चुभता है आँखों में  
आना तो फूंककर निकालना ,
+
आना तो फूँककर निकालना,
 
मैं नाचूँगी  
 
मैं नाचूँगी  
 
राधा बनकर  
 
राधा बनकर  
तू कान्हा बांसुरी बजाना |
+
तू कान्हा बाँसुरी बजाना
  
  
 
आग लगी  
 
आग लगी  
 
जंगल में या  
 
जंगल में या  
पलाश दहके हैं ,
+
पलाश दहके हैं,
 
मेरे भी  
 
मेरे भी  
आंगन में  
+
आँगन में  
कुछ गुलाब महके हैं ,
+
कुछ गुलाब महके हैं,
 
कब तक  
 
कब तक  
हम रखेंगे बांधकर
+
हम रखेंगे बाँधकर
खुशबू का है कहाँ ठिकाना |
+
ख़ुशबू का है कहाँ ठिकाना
  
  
 
लाल हरे  
 
लाल हरे  
 
पीले रंगों भींगी
 
पीले रंगों भींगी
चूनर को धूप में सुखायेंगे ,
+
चूनर को धूप में सुखाएँगे,
 
तुम मन के  
 
तुम मन के  
 
पंख खोल उड़ना  
 
पंख खोल उड़ना  
हम मन के पंख को छुपायेंगे ,
+
हम मन के पंख को छुपाएँगे ,
 
मन की हर  
 
मन की हर  
बंधी गाँठ खोलना  
+
बँधी गाँठ खोलना  
उस दिन तो दरपन हो जाना |
+
उस दिन तो दरपन हो जाना
  
  
 
हारेंगे हम ही  
 
हारेंगे हम ही  
 
तुम जीतना  
 
तुम जीतना  
टॉस मगर जोर से उछालना ,
+
टॉस मगर जोर से उछालना,
 
ओ मांझी  
 
ओ मांझी  
धार बहुत तेज है  
+
धार बहुत तेज़ है  
मुझे और नाव को सम्हालना ,
+
मुझे और नाव को सम्हालना,
 
नाव से  
 
नाव से  
 
उतरना जब घाट पर  
 
उतरना जब घाट पर  
हाथ मेरी ओर भी बढ़ाना
+
हाथ मेरी ओर भी बढ़ाना
 
</poem>
 
</poem>

13:29, 1 नवम्बर 2012 के समय का अवतरण

होली में
आना जी आना
चाहे जो रँग लिए आना ।
भींगेगी देह
मगर याद रहे
मन को भी रंग से सजाना ।


वर्षों से
बर्फ़ जमी प्रीति को
मद्धम सी आँच पर उबालना,
जाने क्या
चुभता है आँखों में
आना तो फूँककर निकालना,
मैं नाचूँगी
राधा बनकर
तू कान्हा बाँसुरी बजाना ।


आग लगी
जंगल में या
पलाश दहके हैं,
मेरे भी
आँगन में
कुछ गुलाब महके हैं,
कब तक
हम रखेंगे बाँधकर
ख़ुशबू का है कहाँ ठिकाना ।


लाल हरे
पीले रंगों भींगी
चूनर को धूप में सुखाएँगे,
तुम मन के
पंख खोल उड़ना
हम मन के पंख को छुपाएँगे ,
मन की हर
बँधी गाँठ खोलना
उस दिन तो दरपन हो जाना ।


हारेंगे हम ही
तुम जीतना
टॉस मगर जोर से उछालना,
ओ मांझी
धार बहुत तेज़ है
मुझे और नाव को सम्हालना,
नाव से
उतरना जब घाट पर
हाथ मेरी ओर भी बढ़ाना ।